DES (Data Encryption Standard) Algorithm Explained in Hindi & English | डीईएस एल्गोरिद्म क्रिप्टोग्राफी में (Complete Notes for Data Science & Information Security Students)


डीईएस एल्गोरिद्म क्रिप्टोग्राफी में (DES Algorithm in Cryptography)

परिचय:

DES (Data Encryption Standard) एक क्लासिक और ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण ब्लॉक सिफर एल्गोरिद्म है जिसे डेटा सुरक्षा के लिए विकसित किया गया था। इसे 1970 के दशक में IBM द्वारा विकसित किया गया और बाद में U.S. National Institute of Standards and Technology (NIST) द्वारा 1977 में आधिकारिक मानक के रूप में अपनाया गया।

DES को विशेष रूप से गोपनीय सरकारी और व्यावसायिक डेटा को एन्क्रिप्ट करने के लिए डिजाइन किया गया था। यह Symmetric Key Block Cipher है, जिसमें एक ही कुंजी का उपयोग एन्क्रिप्शन और डिक्रिप्शन दोनों के लिए किया जाता है।

DES की मूल विशेषताएँ:

  • Algorithm Type: Symmetric Block Cipher
  • Block Size: 64 bits
  • Key Size: 56 bits (अतिरिक्त 8 parity bits के साथ 64-bit key)
  • Structure: Feistel Network (16 Rounds)
  • Rounds: 16 Encryption Rounds
  • Developed By: IBM (Lucifer algorithm पर आधारित)

DES एल्गोरिद्म का कार्य सिद्धांत:

DES एल्गोरिद्म Feistel Structure पर आधारित है, जिसमें Plain Text को दो भागों में बाँटा जाता है — Left (L) और Right (R)। प्रत्येक राउंड में Right Half को एक Function से प्रोसेस किया जाता है और परिणाम को Left Half से XOR किया जाता है।

कार्यप्रणाली:

Plain Text (64 bits)
     ↓
Initial Permutation (IP)
     ↓
16 Feistel Rounds (Key Mixing + Substitution + Permutation)
     ↓
Inverse Initial Permutation (IP⁻¹)
     ↓
Cipher Text (64 bits)

DES के चरण (Steps of DES Algorithm):

1. Initial Permutation (IP):

इनपुट 64-बिट Plain Text को एक निश्चित पैटर्न के अनुसार पुनर्व्यवस्थित किया जाता है। यह सुरक्षा बढ़ाने के लिए प्रारंभिक चरण है।

2. Key Generation:

  • 64-bit कुंजी से 8 parity bits हटा दिए जाते हैं, जिससे 56-bit key बनती है।
  • Key को दो भागों में बाँटा जाता है (C और D)।
  • प्रत्येक राउंड में कुंजी को Left Circular Shift करके Subkey (K1, K2, … K16) बनाई जाती है।

3. Feistel Rounds (16 Rounds):

प्रत्येक राउंड में तीन मुख्य चरण होते हैं:

  • Expansion (E): 32-bit Right Half को 48-bit में विस्तारित किया जाता है।
  • Key Mixing: 48-bit expanded block को round key से XOR किया जाता है।
  • Substitution (S-box): परिणाम को 8 S-boxes से होकर 32-bit आउटपुट में परिवर्तित किया जाता है।
  • Permutation (P): आउटपुट को पुनः व्यवस्थित किया जाता है।

4. Swapping:

हर राउंड के बाद Left और Right halves की अदला-बदली की जाती है।

5. Final Permutation (IP⁻¹):

16 राउंड के बाद प्राप्त डेटा पर अंतिम इनवर्स परमीटेशन लागू किया जाता है, जिससे Cipher Text प्राप्त होता है।

Feistel Function (F) का विवरण:

F(R, K) = P(S(E(R) ⊕ K))
जहाँ:
E = Expansion Function
S = Substitution Boxes
P = Permutation
K = Round Key

उदाहरण:

मान लीजिए Plain Text = 0123456789ABCDEF और Key = 133457799BBCDFF1, तो DES Algorithm 16 rounds के बाद Cipher Text = 85E813540F0AB405 उत्पन्न करता है।

DES के लाभ:

  • मजबूत गणितीय संरचना।
  • सरल और आसानी से लागू किया जाने वाला एल्गोरिद्म।
  • Feistel Structure के कारण रिवर्सिबल प्रोसेस।

DES की सीमाएँ:

  • 56-bit कुंजी बहुत छोटी है — Brute Force Attack से तोड़ी जा सकती है।
  • आधुनिक कंप्यूटरों के लिए सुरक्षा अपर्याप्त।
  • 1998 में Electronic Frontier Foundation (EFF) ने इसे 56 घंटे में क्रैक कर लिया था।

DES के उन्नत संस्करण:

  • Triple DES (3DES): 3 बार DES का उपयोग करके अधिक सुरक्षा प्रदान करता है।
  • AES (Advanced Encryption Standard): DES का उत्तराधिकारी और आधुनिक मानक।

निष्कर्ष:

DES क्रिप्टोग्राफी के इतिहास का एक मील का पत्थर है जिसने आधुनिक एन्क्रिप्शन तकनीकों की नींव रखी। यद्यपि यह अब पुराना हो चुका है, लेकिन इसकी अवधारणा और Feistel Structure आज भी AES जैसे एल्गोरिद्म में उपयोग की जाती है।

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