Physical Layer and Spread Spectrum Concepts | फिजिकल लेयर और स्प्रेड स्पेक्ट्रम की अवधारणा


फिजिकल लेयर और स्प्रेड स्पेक्ट्रम की अवधारणा (Physical Layer and Spread Spectrum Concepts)

परिचय (Introduction)

Physical Layer (भौतिक परत) OSI मॉडल की सबसे निचली परत होती है, जो डेटा को विद्युत, रेडियो या ऑप्टिकल सिग्नलों में बदलकर माध्यम (Transmission Medium) के माध्यम से भेजती है। यह परत Wireless LAN (WLAN) में डेटा ट्रांसफर की मूलभूत इकाई है।

वायरलेस नेटवर्क्स में, Physical Layer सिग्नल की गुणवत्ता, फ्रीक्वेंसी, मॉड्यूलेशन और एनकोडिंग की प्रक्रिया को नियंत्रित करती है। इसके साथ ही, इसमें Spread Spectrum तकनीक का उपयोग सिग्नल को फैलाने और इंटरफेरेंस से बचाने के लिए किया जाता है।

फिजिकल लेयर के कार्य (Functions of Physical Layer)

  • डेटा बिट्स को विद्युत या रेडियो सिग्नल में बदलना।
  • सिग्नल ट्रांसमिशन और रिसेप्शन।
  • मॉड्यूलेशन और डिमॉड्यूलेशन।
  • Carrier Frequency Selection।
  • डेटा दर (Data Rate) नियंत्रण।
  • Transmission Power Control।

Wireless LAN में फिजिकल लेयर की भूमिका

IEEE 802.11 में फिजिकल लेयर को दो भागों में विभाजित किया गया है:

  • Physical Layer Convergence Procedure (PLCP): यह उच्च लेयर से प्राप्त डेटा को फ्रेम में बदलता है और ट्रांसमिशन के लिए तैयार करता है।
  • Physical Medium Dependent (PMD): यह वास्तविक सिग्नल ट्रांसमिशन का कार्य करता है।

PLCP और PMD का संबंध

PLCP डेटा को सिंक्रनाइज़ और फॉर्मेट करता है, जबकि PMD उसे चैनल पर प्रसारित करता है।

मॉड्यूलेशन तकनीकें (Modulation Techniques)

  • BPSK (Binary Phase Shift Keying): दो फेज़ का उपयोग डेटा भेजने के लिए।
  • QPSK (Quadrature PSK): चार फेज़ के माध्यम से प्रति सिग्नल अधिक बिट्स ट्रांसफर।
  • OFDM (Orthogonal Frequency Division Multiplexing): कई सब-चैनल्स का उपयोग कर हाई-स्पीड डेटा ट्रांसमिशन।

स्प्रेड स्पेक्ट्रम (Spread Spectrum)

Spread Spectrum एक ऐसी तकनीक है जिसमें डेटा सिग्नल को व्यापक फ्रीक्वेंसी रेंज में फैलाकर भेजा जाता है। इसका उद्देश्य सिग्नल इंटरफेरेंस को कम करना और डेटा सुरक्षा बढ़ाना है।

स्प्रेड स्पेक्ट्रम के प्रकार

1️⃣ DSSS (Direct Sequence Spread Spectrum)

इस तकनीक में प्रत्येक बिट को एक विशेष Chipping Code से गुणा किया जाता है। यह सिग्नल को बड़े बैंडविड्थ में फैलाता है।

  • इंटरफेरेंस से सुरक्षा।
  • Wi-Fi (802.11b) में उपयोग।
  • हाई डेटा इंटीग्रिटी।

2️⃣ FHSS (Frequency Hopping Spread Spectrum)

इसमें सिग्नल कई फ्रीक्वेंसी चैनलों के बीच तेजी से बदलता रहता है (हॉप करता है)। यह तकनीक इंटरफेरेंस और जैमिंग से सुरक्षा देती है।

  • 802.11a और Bluetooth में उपयोग।
  • उच्च विश्वसनीयता और गोपनीयता।

3️⃣ OFDM (Orthogonal Frequency Division Multiplexing)

OFDM में डेटा को कई छोटे सब-चैनल्स में विभाजित किया जाता है जो एक-दूसरे से ऑर्थोगोनल होते हैं। इससे स्पेक्ट्रम का बेहतर उपयोग होता है और डेटा दर बढ़ती है।

स्प्रेड स्पेक्ट्रम के लाभ (Advantages)

  • इंटरफेरेंस और शोर के प्रति प्रतिरोध।
  • सिग्नल सुरक्षा और गोपनीयता।
  • समानांतर संचार की क्षमता।
  • सिग्नल की पहचान कठिन बनाता है (Anti-jamming)।

स्प्रेड स्पेक्ट्रम के अनुप्रयोग (Applications)

  • WLAN (Wi-Fi 802.11b/g/n)
  • Bluetooth और ZigBee
  • GPS सिस्टम
  • सैन्य संचार प्रणाली

फिजिकल लेयर और स्प्रेड स्पेक्ट्रम का संबंध

फिजिकल लेयर स्प्रेड स्पेक्ट्रम तकनीक का उपयोग सिग्नल ट्रांसमिशन को सुरक्षित और कुशल बनाने के लिए करती है। DSSS और FHSS दोनों IEEE 802.11 मानक का हिस्सा हैं, और आधुनिक OFDM तकनीक ने उच्च गति वाले वायरलेस नेटवर्क के लिए इन्हें प्रतिस्थापित कर दिया है।

निष्कर्ष (Conclusion)

फिजिकल लेयर वायरलेस नेटवर्क का आधार है और स्प्रेड स्पेक्ट्रम इसकी प्रमुख तकनीक है। यह संयोजन सिग्नल स्थिरता, सुरक्षा, और विश्वसनीयता को सुनिश्चित करता है। Wireless and Mobile Computing में इन दोनों की समझ एक प्रभावी संचार प्रणाली के लिए अत्यंत आवश्यक है।

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