Cellular System in Wireless Communication | सेलुलर सिस्टम क्या है और कैसे काम करता है?


सेलुलर सिस्टम (Cellular System) क्या है?

परिचय

सेलुलर सिस्टम वायरलेस संचार का एक मूलभूत ढांचा है, जो आज के मोबाइल नेटवर्क (2G, 3G, 4G, 5G) की नींव बनाता है। इसका मुख्य उद्देश्य सीमित फ्रीक्वेंसी बैंडविड्थ का अधिकतम उपयोग करना और बड़ी संख्या में उपयोगकर्ताओं को एक साथ सेवा प्रदान करना है।

“सेलुलर” शब्द का अर्थ ही है – नेटवर्क को छोटे-छोटे भागों में बाँटना, जिन्हें “सेल्स” कहा जाता है। प्रत्येक सेल का अपना बेस स्टेशन (Base Station) होता है, जो उस क्षेत्र के मोबाइल उपयोगकर्ताओं के साथ संचार करता है।

सेलुलर सिस्टम की अवधारणा

वायरलेस नेटवर्क को एक बड़े क्षेत्र में फैलाने के बजाय, उसे कई छोटे-छोटे भूगोलिक क्षेत्रों में विभाजित किया जाता है जिन्हें सेल्स कहा जाता है। हर सेल का एक अद्वितीय फ्रीक्वेंसी सेट होता है ताकि एक ही समय पर पड़ोसी सेल्स के बीच इंटरफेरेंस न हो।

सेलुलर नेटवर्क की सबसे बड़ी विशेषता है फ्रीक्वेंसी री-यूज़ (Frequency Reuse)। इसका अर्थ है कि एक ही फ्रीक्वेंसी को नेटवर्क के अलग-अलग हिस्सों में पुनः प्रयोग किया जा सकता है, बशर्ते उनके बीच पर्याप्त दूरी हो।

सेलुलर सिस्टम के घटक

  1. Mobile Station (MS): उपयोगकर्ता का मोबाइल डिवाइस जो रेडियो सिग्नल के माध्यम से बेस स्टेशन से जुड़ता है।
  2. Base Station (BS): यह प्रत्येक सेल का केंद्र बिंदु होता है, जो मोबाइल स्टेशनों के साथ द्विदिश संचार करता है।
  3. Mobile Switching Center (MSC): यह नेटवर्क का “मस्तिष्क” होता है जो कई बेस स्टेशनों को जोड़ता है और कॉल रूटिंग, हैंडओवर, और डेटा स्विचिंग का काम करता है।
  4. Public Switched Telephone Network (PSTN): बाहरी नेटवर्क जिससे वॉयस कॉल्स और अन्य संचार जुड़े होते हैं।
  5. Operation and Maintenance Center (OMC): पूरे नेटवर्क का प्रबंधन और मॉनिटरिंग करता है।

सेलुलर सिस्टम की कार्यप्रणाली

सेलुलर सिस्टम का मुख्य कार्य मोबाइल डिवाइसों को वायरलेस रूप से नेटवर्क से जोड़ना है। इसका काम तीन प्रमुख चरणों में होता है:

1️⃣ सिग्नल ट्रांसमिशन

जब कोई उपयोगकर्ता कॉल करता है या डेटा भेजता है, तो उसका सिग्नल मोबाइल डिवाइस से बेस स्टेशन तक पहुँचता है। बेस स्टेशन उस सिग्नल को Mobile Switching Center (MSC) को भेजता है, जो आगे इसे संबंधित नेटवर्क तक फॉरवर्ड करता है।

2️⃣ फ्रीक्वेंसी असाइनमेंट

हर सेल को कुछ विशेष फ्रीक्वेंसी असाइन की जाती हैं। पास-पास के सेल्स में एक जैसी फ्रीक्वेंसी का उपयोग नहीं किया जाता ताकि इंटरफेरेंस कम हो।

3️⃣ हैंडओवर

जब कोई उपयोगकर्ता एक सेल से दूसरी सेल में जाता है, तो उसका कनेक्शन नए बेस स्टेशन को ट्रांसफर हो जाता है। इस प्रक्रिया को हैंडओवर कहते हैं।

फ्रीक्वेंसी री-यूज़ (Frequency Reuse)

यह सेलुलर सिस्टम का सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत है। इसमें एक फ्रीक्वेंसी सेट को कई सेल्स में पुनः उपयोग किया जाता है ताकि अधिक उपयोगकर्ताओं को सीमित स्पेक्ट्रम में सेवा दी जा सके।

सेलुलर लेआउट और डिजाइन

सेलुलर नेटवर्क को आमतौर पर हेक्सागोनल (hexagonal) आकार में डिजाइन किया जाता है क्योंकि यह ज्यामितीय रूप से पूरे क्षेत्र को कवर करने के लिए सबसे उपयुक्त होता है।

  • हर सेल का रेडियस सामान्यतः 1–20 किमी होता है।
  • सेल्स के बीच ओवरलैप कम से कम रखा जाता है।
  • हर सेल में एक बेस स्टेशन होता है।

सेल टाइप्स

  • Macro Cell: बड़े क्षेत्रों के लिए (उदा. हाइवे)।
  • Micro Cell: शहरों और घनी आबादी वाले क्षेत्रों के लिए।
  • Pico Cell: इमारतों या मॉल के अंदर।
  • Femto Cell: घरों या छोटे दफ्तरों के लिए।

लाभ (Advantages)

  1. सीमित स्पेक्ट्रम का अधिकतम उपयोग।
  2. बेहतर कॉल क्वालिटी और कम इंटरफेरेंस।
  3. नेटवर्क विस्तार और स्केलेबिलिटी आसान।
  4. यूज़र मोबिलिटी के लिए सपोर्ट।

सीमाएँ (Limitations)

  • हैंडओवर के दौरान कॉल ड्रॉप की संभावना।
  • सेल्स के बीच फ्रीक्वेंसी प्लानिंग जटिल।
  • बेस स्टेशन की लागत अधिक।
  • घनी आबादी वाले क्षेत्रों में इंटरफेरेंस की समस्या।

वास्तविक उपयोग

  • मोबाइल टेलीफोनी नेटवर्क (2G–5G)।
  • वायरलेस इंटरनेट और IoT नेटवर्क।
  • स्मार्ट ट्रांसपोर्टेशन सिस्टम।

निष्कर्ष

सेलुलर सिस्टम ने वायरलेस कम्युनिकेशन को विश्व स्तर पर बदल दिया है। यह सीमित संसाधनों में अधिक उपयोगकर्ताओं को सेवा देने का एक कुशल तरीका प्रदान करता है। फ्रीक्वेंसी री-यूज़, हैंडओवर और सेल स्ट्रक्चर जैसे सिद्धांतों के कारण आज की मोबाइल तकनीक संभव हुई है।

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