भारत में Rural Credit System का विकास और विस्तार – पूरी जानकारी


भारत में Rural Credit System का विकास और विस्तार – पूरी जानकारी

भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती देने के लिए Rural Credit System की भूमिका बहुत अहम रही है। इसकी शुरुआत छोटे सहकारी संस्थानों से हुई और आज यह एक व्यापक प्रणाली बन चुकी है जिसमें बैंक, सरकार और विकास संस्थाएँ शामिल हैं।

🔹 शुरुआत – Pre-Independence Era

स्वतंत्रता से पहले किसानों को साहूकारों से ऊँचे ब्याज पर कर्ज लेना पड़ता था। उस समय संस्थागत ऋण प्रणाली नगण्य थी।

🔹 1904 – Cooperative Credit Societies Act

Co-operative movement की शुरुआत हुई और पहली बार ग्रामीण क्षेत्रों में संस्थागत ऋण की नींव रखी गई।

🔹 Post-Independence Phase

  • 1954 – All India Rural Credit Survey Report से नई योजनाएँ बनीं
  • 1969 – Banks का Nationalization हुआ जिससे ग्रामीण ऋण की पहुँच बढ़ी
  • 1975 – Regional Rural Banks (RRBs) की स्थापना
  • 1982 – NABARD की स्थापना rural credit के लिए अहम कदम रहा

🔹 Modern Phase – Financial Inclusion और Digitization

  • Self Help Groups (SHGs) और Microfinance Institutions का उदय
  • PM Jan Dhan Yojana और DBT schemes
  • Digital banking और mobile-enabled credit disbursement

🎯 प्रमुख योगदान

  • कृषि, पशुपालन, सिंचाई और ग्रामीण उद्योगों को फाइनेंशियल सपोर्ट
  • Self-employment को बढ़ावा
  • Women empowerment के लिए SHG आधारित लोन

⚠️ अभी भी चुनौतियाँ

  • Loan repayment में default rate
  • Institutional credit की ग्रामीण reach अभी भी सीमित
  • Documentation और awareness की कमी

✅ निष्कर्ष

भारत में Rural Credit System का विकास समय के साथ होता गया है, और अब यह rural empowerment का एक मजबूत माध्यम बन चुका है। Future में इसे और inclusive और accessible बनाने की आवश्यकता है।

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