Admissibility and Probative Value of Electronic Evidence: डिजिटल साक्ष्य की वैधता और प्रमाणिकता


Admissibility and Probative Value of Electronic Evidence: डिजिटल साक्ष्य की वैधता और प्रमाणिकता

परिचय

इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य (Electronic Evidence) की स्वीकार्यता और प्रमाणिकता (Admissibility and Probative Value) कानूनी प्रणाली में तेजी से महत्वपूर्ण बन गई है। डिजिटल लेन-देन, ऑनलाइन संचार और साइबर अपराधों के बढ़ते मामलों के कारण न्यायालयों में इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्यों की भूमिका लगातार बढ़ रही है। भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (Indian Evidence Act, 1872) और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (IT Act, 2000) इन साक्ष्यों की वैधता और प्रमाणिकता को निर्धारित करते हैं।

इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य की स्वीकार्यता

इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य को भारतीय कानून के तहत स्वीकार्य बनाने के लिए कुछ आवश्यक शर्तें पूरी करनी होती हैं। इन शर्तों को मुख्य रूप से भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 65B के तहत निर्धारित किया गया है।

इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य की स्वीकार्यता के लिए कानूनी प्रावधान

धारा विवरण
धारा 65B इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड्स को न्यायालय में प्रमाण के रूप में स्वीकार करने की प्रक्रिया निर्धारित करता है।
आईटी अधिनियम, 2000 की धारा 4 इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड्स को कानूनी वैधता प्रदान करता है।
आईटी अधिनियम, 2000 की धारा 79A सरकार को डिजिटल साक्ष्यों की प्रमाणिकता निर्धारित करने के लिए एजेंसियों को मान्यता देने का अधिकार देता है।

इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य की प्रमाणिकता और प्रभाव

  • सत्यापन: डिजिटल साक्ष्य को प्रमाण के रूप में प्रस्तुत करने के लिए एक प्रमाणपत्र (Certificate) आवश्यक होता है।
  • डिजिटल फॉरेंसिक: इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्यों की सत्यता की पुष्टि डिजिटल फॉरेंसिक तकनीकों से की जाती है।
  • छेड़छाड़ और डेटा सुरक्षा: न्यायालय इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्यों की विश्वसनीयता की पुष्टि करने के लिए डेटा की अखंडता की जाँच करता है।

इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्यों की संभावित चुनौतियाँ

  • डिजिटल साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ और हैकिंग की संभावना।
  • डेटा की प्रामाणिकता और सत्यता को स्थापित करने में कठिनाई।
  • न्यायालयों में डिजिटल साक्ष्य की व्याख्या और स्वीकार्यता को लेकर जटिलताएँ।

इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्यों के प्रभावी प्रबंधन के उपाय

  • डेटा सुरक्षा और साइबर फॉरेंसिक मानकों का पालन करना।
  • डिजिटल हस्ताक्षर और प्रमाणीकृत प्रमाणपत्रों का उपयोग।
  • इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य की वैधता सुनिश्चित करने के लिए मानकीकृत प्रक्रियाओं का पालन।
  • न्यायालयों और कानून प्रवर्तन एजेंसियों के लिए साइबर सुरक्षा प्रशिक्षण।

निष्कर्ष

इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य न्याय प्रणाली का एक अनिवार्य हिस्सा बन चुके हैं। भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 ने इन साक्ष्यों को कानूनी मान्यता प्रदान की है, लेकिन उनकी विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए डिजिटल सुरक्षा उपायों और प्रमाणन प्रक्रियाओं को सुदृढ़ करना आवश्यक है।

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