Concept of Spread Spectrum in Computer Network in Hindi - कंप्यूटर नेटवर्क में स्प्रेड स्पेक्ट्रम की अवधारणा


स्प्रेड स्पेक्ट्रम की अवधारणा (Concept of Spread Spectrum)

स्प्रेड स्पेक्ट्रम (Spread Spectrum) एक संचार तकनीक है जो सिग्नल को अधिक फ्रीक्वेंसी बैंड में फैलाकर डेटा ट्रांसमिट करती है। यह तकनीक सुरक्षा, इंटरफेरेंस से बचाव और डेटा इंटीग्रिटी को बेहतर बनाने में मदद करती है।

स्प्रेड स्पेक्ट्रम के प्रकार

प्रकार विवरण
फ्रिक्वेंसी होपिंग स्प्रेड स्पेक्ट्रम (FHSS) डेटा ट्रांसमिशन को अलग-अलग फ्रीक्वेंसी चैनलों में स्विच करके किया जाता है, जिससे इंटरफेरेंस कम होता है।
डायरेक्ट सीक्वेंस स्प्रेड स्पेक्ट्रम (DSSS) डेटा को एक उच्च दर वाले स्प्रेडिंग कोड के साथ मल्टीप्लाई किया जाता है, जिससे ट्रांसमिशन अधिक सिक्योर और स्थिर होता है।
ऑर्थोगोनल फ्रिक्वेंसी डिवीजन मल्टीप्लेक्सिंग (OFDM) डेटा को छोटे-छोटे पैकेट्स में विभाजित करके एक साथ विभिन्न फ्रिक्वेंसी चैनलों पर भेजा जाता है।

स्प्रेड स्पेक्ट्रम के लाभ

  • सिग्नल की सिक्योरिटी और प्राइवेसी बढ़ाता है।
  • इंटरफेरेंस को कम करता है और नेटवर्क की परफॉर्मेंस को बढ़ाता है।
  • मल्टीपल यूजर्स को एक साथ एक ही बैंडविड्थ पर काम करने की सुविधा देता है।
  • वायर्ड और वायरलेस नेटवर्क दोनों में प्रभावी रूप से उपयोग किया जाता है।

स्प्रेड स्पेक्ट्रम की चुनौतियाँ

  • उच्च हार्डवेयर लागत
  • अधिक कंप्यूटेशनल प्रोसेसिंग की आवश्यकता
  • सिग्नल सिंक्रोनाइज़ेशन की जटिलता

निष्कर्ष

स्प्रेड स्पेक्ट्रम तकनीक वायरलेस और सिक्योर नेटवर्किंग के लिए अत्यधिक उपयोगी है। यह इंटरफेरेंस को कम करने, डेटा सुरक्षा बढ़ाने और मल्टीपल डिवाइसेस को एक साथ कनेक्ट करने में सहायता करता है। आधुनिक वायरलेस संचार जैसे Wi-Fi, Bluetooth, और 4G/5G नेटवर्क में यह तकनीक व्यापक रूप से उपयोग की जाती है।

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