4+1 View Model of Software Architecture in Hindi - 4+1 व्यू मॉडल क्या है?
4+1 View Model of Software Architecture क्या है?
4+1 View Model सॉफ़्टवेयर आर्किटेक्चर को पांच दृष्टिकोणों (Views) में विभाजित करता है, जिससे सिस्टम की बेहतर समझ और डिज़ाइन किया जा सके। इसे Philippe Kruchten ने विकसित किया था और यह जटिल सॉफ़्टवेयर सिस्टम्स को व्यवस्थित करने के लिए उपयोग किया जाता है।
4+1 View Model के 5 मुख्य घटक
View | विवरण | मुख्य उद्देश्य |
---|---|---|
1. Logical View (तार्किक दृष्टिकोण) | सिस्टम की फंक्शनलिटी को दिखाता है, जिसमें क्लासेस, ऑब्जेक्ट्स और उनके संबंध शामिल होते हैं। | सिस्टम के उपयोगकर्ताओं और डेवलपर्स के लिए समझने योग्य डिज़ाइन। |
2. Development View (डेवलपमेंट दृष्टिकोण) | सिस्टम के सॉर्स कोड ऑर्गेनाइजेशन को परिभाषित करता है और डेवलपर्स के लिए मॉड्यूल्स का विवरण देता है। | डेवलपर्स के लिए बेहतर मॉड्यूलरिटी और कोड ऑर्गेनाइजेशन। |
3. Process View (प्रोसेस दृष्टिकोण) | सिस्टम में चलने वाली प्रक्रियाओं (Processes), थ्रेड्स (Threads), और इंटरैक्शंस को दर्शाता है। | सिस्टम की परफॉर्मेंस, थ्रूपुट और समांतर निष्पादन (Concurrency) को समझना। |
4. Physical View (भौतिक दृष्टिकोण) | सिस्टम के हार्डवेयर और नेटवर्क इन्फ्रास्ट्रक्चर को दिखाता है, जिससे डिप्लॉयमेंट प्लानिंग की जा सके। | सिस्टम डिप्लॉयमेंट की योजना और हार्डवेयर आवश्यकताओं को समझना। |
5. Use Case View (यूज़ केस दृष्टिकोण) | सभी अन्य दृष्टिकोणों को आपस में जोड़ता है और उपयोगकर्ता आवश्यकताओं (User Requirements) को दर्शाता है। | प्रोजेक्ट की आवश्यकताओं को स्पष्ट रूप से परिभाषित करना। |
4+1 View Model का महत्व
- यह सिस्टम डिज़ाइन को व्यवस्थित करता है।
- सॉफ़्टवेयर विकास प्रक्रिया को सरल और प्रभावी बनाता है।
- हर स्तर पर डेवलपर्स, आर्किटेक्ट्स और स्टेकहोल्डर्स के लिए स्पष्टता प्रदान करता है।
4+1 View Model का उपयोग कहाँ किया जाता है?
- बड़े और जटिल सॉफ़्टवेयर सिस्टम्स के डिज़ाइन में
- क्लाउड-बेस्ड और एंटरप्राइज़ सॉफ़्टवेयर आर्किटेक्चर
- बैंकिंग, टेलीकॉम, और डिस्ट्रीब्यूटेड सिस्टम्स
- IoT और रियल-टाइम एप्लिकेशन में
निष्कर्ष
4+1 View Model एक महत्वपूर्ण सॉफ़्टवेयर आर्किटेक्चर दृष्टिकोण है जो सिस्टम की गहराई से समझ प्रदान करता है। यह विभिन्न स्टेकहोल्डर्स की आवश्यकताओं को संतुलित करने में सहायक होता है और सॉफ़्टवेयर डिज़ाइन को अधिक प्रभावी और कुशल बनाता है।
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